भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उत्तर प्रेम / विनोद विट्ठल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 9 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद विट्ठल |अनुवादक= |संग्रह=पृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खींचता था घर की तरह
बचपन की तरह जिसमें लौटा नहीं जा सकता
गोपनीय क्षणों की उजास भरी ख़ुशबूदार सुरँग थी वह
बहुत घना एकान्त था दो झींगुरों के बाद भी
बाद के दिनों में मैंने उस सुरँग को नमक में बदला
उधर स्वाद बढ़ा