भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीख / विनोद विट्ठल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:54, 9 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद विट्ठल |अनुवादक= |संग्रह=पृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सादगी मैं तुम्हें बाउजी से सिखाऊँगा
माँ तुम्हें होना और बजना सिखा सकती है

धैर्य के लिए पहाड़ के बजाय
घर के कबाड़ में पड़े पियानो के पास ले जाऊँगा
जो अब भी सोचता है:
मैं किसी दिन ज़रूर सुना जाऊँगा

अकेलेपन से लड़ना
तुम्हें बिजली का रेडियो सिखा सकता है
और अकेले रहना एल्बम

कौन कहता है,
तुम्हें प्यार करना कोई नहीं सिखाएगा
केवल किसी दिन अकेले में चान्द देखना ।