भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पृथ्वी पर दिखी पाती. / विनोद विट्ठल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:16, 9 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद विट्ठल |अनुवादक= |संग्रह=पृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(बिटिया पाती के जन्म पर लिखी कविता)
फूलों ने माँगी होगी एक नयी प्रजाति
दूब रूठी होगी तलुओं के नए जोड़े के लिए
पानी ने नई प्यास के लिए अनशन किया होगा
मुझे नई बांसुरी दो, हवा ने कहा होगा
तभी; एक नए वाद्य-यन्त्र की तरह
पृथ्वी पर दिखी पाती ।
धरती के सितार पर तार की तरह
पक्षियों के कोरस में एक स्वर ज़्यादा था
एक नया रँग नामकरण की प्रतीक्षा में था
बढ़ा हुआ आकार था चान्द का
गिनती से ज्यादा थे तारे
कहीं कुछ था हर जगह, नए वर्ण-सा
जिससे भाषा भरी जानी थी
तभी; एक नए प्रेम की तरह
पृथ्वी पर दिखी पाती ।
पौधों के पास अपना उल्लास था
पेड़ों और तितलियों की तरह
आकाश से धरती जो फूटी थी एक अण्डे की तरह
तभी; एक नई नदी की तरह
पृथ्वी पर दिखी पाती ।