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अँकुर / इब्बार रब्बी

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1.
अँकुर जब सिर उठाता है
ज़मीन की छत फोड़ गिराता है
वह जब अन्धेरे में अंगड़ाता है
मिट्टी का कलेजा फट जाता है
हरी छतरियों की तन जाती है कतार
छापामारों के दस्ते सज जाते हैं
पाँत के पाँत
नई हो या पुरानी
वह हर ज़मीन काटता है
हरा सिर हिलाता है
नन्हा धड़ तानता है
अँकुर आशा का रँग जमाता है ।


2.
क्या से क्या हो रहा हूँ
छाल तड़क रही है
किल्ले फूट रहे हैं
बच्चों की हंसी में
मुस्करा रहा हूँ
फूलों की पाँत में

गा रहा हूँ ।