भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:08, 14 अगस्त 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



ईहातीत क्षण

ईहातीत क्षणों की अनुभूति अनुभव गम्य होती है। यह आत्मा जिसमें हर क्षण कुछ ज्ञान पर्याय प्रकट हो रहे हैं। यह हर क्षण कुछ जान रहा है और उस ज्ञान के आकार में परिवर्तित हो रहा है। जब यह पञ्च भूतों को भोगता है, जानता है, तो उसमें व्यक्त होता है, रूपायित होता है ,प्रति भासित होता है, फ़िर स्वयम में लीं हो जाता है, बाहर कुछ रहता नहीं है। इन कवितायों में सत्ता के अस्ति, अव्यय अव्यक्त, अन्तः मुक्त स्वरुप को साक्षात करने का प्रयास किया है। इनमें यदि कहीं दिव्य अनुभूति है तो वह ईश्वर की कृपा है। दोष सारे मेरे हैं।

ईहातीत क्षण ------ईश्वरीय अनुकम्पा के क्षणों का दिव्य प्रसाद है.