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बात यूँ है / नाज़िम हिक़मत / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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आगे बढ़ती धूप के सामने खड़ा हूँ,
मेरी हथेलियां भूखी हैं,
दुनिया ख़ूबसूरत है ।

दरख़्तों को देख
मेरी आंखें थकती नहीं...
कितनी उम्मीदों से भरे, कितने हरे-भरे ।

बेरी की झाड़ को चीरती
एक धूपहली सड़क,
मैं खड़ा क़ैदखाने की खिड़की के सामने ।

दवाइयों की महक अ
ब नहीं आती...
पास कहीं खिलते होंगे गुलनार के फूल ।

बात बस यूँ है :
गिरफ़्तारी पर कोई बस नहीं,
ख़ुद को उनके सुपुर्द नहीं करना है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य