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घाव बड़े ही गहरे हैं / अनामिका सिंह 'अना'

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अश्रु छलक कर आज हमारे, जो गालों पर ठहरे हैं।
प्रतिनिधि हैं ये विरह व्यथा के, घाव बड़े ही गहरे हैं॥

अहरह अब नव घात हृदय पर, बेकल सुधियाँ करती हैं
एहसासों की लुटी चिंदिया, दीप द्वार नित धरती हैं।
हुआ स्वप्न में स्वप्न विखंडित, निलय प्रीति का सूना है।
पीड़ातप उपहार मिला जो, बढ़ता निशि-दिन दूना है॥

सूखे अधर नाम के तेरे, पढ़ते सतत ककहरे हैं।
अश्रु छलक कर आज हमारे, जो गालों पर ठहरे हैं॥

विगत चुंबनों के अंकन नित, सुमिरे हृदय वीथिका है।
अधराधर जो रच डाली थी, वो लयहीन गीतिका है॥
रोम-रोम पर विह्वल हो जो, छंद प्रणय थे रच डाले।
अश्रु बूँद हो व्याकुल उनको, स्मृतियों में खंगाले॥

अब तक अंकित वह मानस पर, सारे चित्र सुनहरे हैं।
अश्रु छलक कर आज हमारे, जो गालों पर ठहरे हैं॥

अटल हुई पीड़ा पर्वत सम, टूटे क्यों अनुबंध सभी।
दृश्य हुए सारे वह झूठे, जो देखे थे साथ कभी॥
श्वासें सारी तुझे समर्पित, कर दूँ गलियों हाटों में।
करूँ प्रीति का तर्पण जाकर, फिर गंगा के घाटों में॥

इन्द्रिय के सब तंतु रसायन, तुम बिन गूँंगे बहरे हैं।
अश्रु छलक कर आज हमारे, जो गालों पर ठहरे हैं॥