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व्योम विस्तृत प्रीति का / अनामिका सिंह 'अना'

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शब्द का तूणीर लघु है, व्योम विस्तृत प्रीति का।
भाव बौने लिख न पाऊँ, प्रेम पर शुचि गीतिका॥

कथ्य इसका है अपरिमित, बाँच कैसे लूँ भला।
कौन है जग में न जिसके, भाव नेहिल हृद पला॥
ढाई आखर में समाहित, गीत नेहिल नीति का।
शब्द का तूणीर लघु है, व्योम विस्तृत प्रीति का॥

प्रेम राधे का लिखूँ पर, लेखनी सक्षम नहीं।
गोपियों का लिख विरह दूँ, भाव इतने नम नहीं॥
लग रही प्रस्तुति अधूरी, नयन ओझल वीथिका।
शब्द का तूणीर लघु है, व्योम विस्तृत प्रीति का॥

सृष्टि के यह केन्द्र में है, माप कैसे लूँ परिधि।
प्रेम पावन भाव हृद का, लेख लिक्खूँ कौन विधि॥
प्रेम में पहला शगुन है, डूबने की रीति का।
शब्द का तूणीर लघु है, व्योम विस्तृत प्रीति का॥