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छा गई बरसात की पहली घटा, अब क्या करूँ / जोश मलीहाबादी

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छा गई बरसात की पहली घटा, अब क्या करूँ ?
ख़ौफ़ था जिस का वो आ पहुँची बला, अब क्या करूँ ?
हिज्र<ref>वियोग</ref> को बहला चली थी गर्म मौसम की सुमूम<ref>लू जिसी गर्म हवा</ref>
ना-गहाँ<ref>अचानक</ref> चलने लगी ठण्डी हवा, अब क्या करूँ ?

आँख उठी ही थी कि अब्र-ए-लाला-गूँ<ref>लालिमा लिए हुए बादल</ref> की छाँव में
दर्द से कहने लगा कुछ झुटपुटा, अब क्या करूँ ?
अश्क अभी थमने न पाए थे कि बेदर्दी के साथ
बून्दियों से बोस्ताँ<ref>ख़ुशी के बाग़</ref> बजने लगा, अब क्या करूँ ?

ज़ख़्म अब भरने न पाए थे कि बादल चर्ख़<ref>आसमान</ref> पर
आ गया अँगड़ाइयाँ लेता हुआ, अब क्या करूँ ?
आ चुकी थी नींद-सी ग़म को कि मौसम ना-गहाँ<ref>अचानक</ref>
बहर-ओ-बर<ref>ज़मीन और पानी</ref> में करवटें लेने लगा, अब क्या करूँ ?

चर्ख़ की बे-रँगियों से सुस्त थी रफ़्तार-ए-ग़म
यक-ब-यक हर ज़र्रा गुलशन बन गया, अब क्या करूँ ?
क़ुफ़्ल-ए-बाब-ए-शौक़<ref>प्रेमनगर का दरवाज़ा</ref> थीं माहौल की ख़ामोशियाँ
दफ़अतन<ref>अचानक</ref> काफ़िर पपीहा बोल उठा, अब क्या करूँ ?

हिज्र का सीने में कुछ कम हो चला था पेच-ओ-ताब<ref>घुमाव</ref>
बाल बिखराने लगी काली घटा, अब क्या करूँ ?
आँख झपकाने लगी थी दिल में याद-ए-लहन-ए-याद<ref>किसी चीज़ का बार-बार याद आना</ref>
मोर की आने लगी बन से सदा, अब क्या करूँ ?

घट चला था ग़म की रँगीं बदलियों की आड़ से
उन का चेहरा सामने आने लगा अब क्या करूँ ?
आ रही हैं अब्र से उन की सदाएँ 'जोश' 'जोश'
ऐ ख़ुदा ! अब क्या करूँ, बार-ए-ख़ुदा ! अब क्या करूँ ?

शब्दार्थ
<references/>