भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आम्रपाली / युद्ध / भाग 10 / ज्वाला सांध्यपुष्प

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:26, 16 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्वाला सांध्यपुष्प |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संकुल युद्ध में बैशाली के, सहस्रो कट्टल लोग।
चाहे रणनीति बदल इ, दूर करे के रोग॥88॥

मग्गह सैनिक काटे खुब, बज्जी के उ कुट्टी सन।
बज्जि तइओ बर्हे न देबे, पटके उ धोबी सन॥89॥

रहे दू दण्ड दिनो बच्चल, सुरुज बुर्हाएल झुक्कल।
मुदा जुआन अजात अखनि, आ विशाल लग रूक्कल॥90॥

विशाल सुनल ललकार उ, फुफकार नाग उट्ठल।
निकले बाण कमान से, बरसे इ आग लग्गल॥91॥

खींच प्रत्यन्चा घेंटी तक, अजात छोड़े तीर।
कैशिक न्याय विध चलाकऽ, बाण काटे उ बीर॥92॥

छोड़ भल्लमुख बाण अखनि, भेदे चाहे दिल उ।
चला कर्णिक बाा अजात्, काटे लक्ष्य दन-दन उ॥93॥

चले तीर गिरे चिड़इ सन्, दुन्नो बीर के बीच।
देखलक तरकश खाली हए, बच्चल न एक्को तीर॥94॥

तिर छोड़ अजात्, तलबार, लेकअ ऊ अब भिड़ल।
विशाल के लेल तलबार, से कोई फर्क न पड़ल॥95॥

दुरथ के चउदह घोड़ा, लाल करिआ उज्जर।
सुरुज प्रकाश पड़े पर सतरङ पनसोखा बनल॥96॥