आम्रपाली / कोनहारा / भाग 10 / ज्वाला सांध्यपुष्प
चउदह के हम रही शकंुतला
चओसठ के उ मन्मथराज।
सरिता मिले चाहे सागर में
अम्बर काहे करत एतराज॥87॥
सुन्दरी के लेबे ला अंक तु
बनलऽ मानवता के कलंक।
नद्दी लाल कएलऽ जेक्करा ला
जनलऽ अखनी न ओक्कर रंग॥88॥
पवित्र हबे ई देह गङा सन
मन साफ खूब दर्पण समान।
एहे खातिर ई बज्जी बंधु सऽ
करइत हतन इ हम्मर सम्मान॥89॥
जनइत न हतन कोनो अदमी
हबे कोन हम्मरो भगवान।
रात इन्जोरिया बहिन छोड़कऽ
जनइअ न कोइ पण्डित सुजान॥90॥
कोन नक्षत्र हए हम्मर अकास में
ओक्करा बिन जिनगी निस्सार।
नाम ओक्कर इ केन्ना बताउँ,
बर्षकार उ बोलल ‘बिम्बसार’॥91॥
-‘जीत कअ रण अब हम हारली
हो गेली अइसन निरूपाय।
माउ बनाबे अइली तोरा
बन गेलऽ तू अब हम्मर माय॥’92॥
वर्षकार खड़ा हो बोलल ऊ
‘अब सुनअ मग्गह राजकुमार।
बतानाई बहुत कठिन हए इ
कोन जितल गेल कोन हार॥93॥
जबतक रहत प्राणी पृथ्वी पर
‘कोनहारा’ बन रहत याद।
अम्रपाली-बिम्बसार जौरे सब
लेतन नाम तोरो अजात्॥’94॥
लजाएल लउटल लाल कोनहारा से
जीतल राज विशाल, हारल उ नारी से।
जोश ठंढ़ाएल बइठल अब अइसन
तोड़लक नाता उपमंत्री अविचारी से॥
बुद्ध के बिचार के विरुद्ध कएलक युद्ध
काटे चाहलक उ धरती के टेङारी से।
जाइते मुक्त करत कहत बिम्बसार से
भेल गलती रक्खम ध्यान अगारी से॥95॥