आम्रपाली / तथागत / भाग 4 / ज्वाला सांध्यपुष्प
-‘गोपा रहे इ बाधा जग के
राहुल रहे इ रोड़ा डग के॥
सत्य, शान्ति के हम पाबे लेल।
छोर देली हुनका एहे लेल॥29॥
मध्यम मार्ग संसार में उँच्चा।
फेरू नारी रहत केत्ता निच्चा॥
माया, मोह, संसार बाधा हए।
डग पर नारि के हक् आधा हए॥30॥
सम्यक् स्वर, मार्ग मध्यम हम्मर।
बिस्तार बाकी हए एक्कर सबतर॥
उपाय न नारी के छोरे से
ज्योति-रथ चलत् न चक्का तोरे से॥31॥
पत्नी, कामिनी बाधा तप के।
श्रमण ओहे जे रहइअ बच के॥
अष्टांगिक पथ तू अपना कअ।
जगत् छोड़कअ सत्य अपनाबऽ॥32॥
पंचशील सुन्दर भोगी जन के।
दशशील कसे इ भिक्षु जन के॥
तृष्णा जरा निर्वाण-सुख पाबऽ।
मध्यम मार्ग पर मन के लाबऽ॥33॥
आठ डग हए उपाय शान्ति के।
झंझट कोनो न जाति-पाँति के॥
नर-नारी में न भेद करइअ।
विषय-दरिआव से दूर रहइ’॥34॥
ब्रह्म सत्य, जगत् के मिथ्या जानऽ।
‘हम अहम’ के तू घमण्ड न लाबऽ॥
संसार सेहो ई नश्वर हए।
तन क्षणिक्, स्थायी ईश्वर हए॥35॥
सत्य, शान्ति, अहिंसा, जग में अमृत।
दोस्ती दुनिया में कहुँ न बर्जित॥
गोस्सा डाह से न डाहऽ जग के।
मिठगर बचन न धन हए खग के॥36॥