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आम्रपाली / तथागत / भाग 3 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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आनन्द सब अप्पन आँख खोल्लक।
ओक्करा आँख में पृथ्वी डोल्लक॥
घुरमी लग्गल, देख सुन्दरी के।
सम्हारे कइसे मन-मुरगी के॥21॥

अम्रपाली मुस्कुरा तकइअ ऊ।
आनन्द के मन डरे भगइअ ऊ॥
हाथ कन्हा पर रखलन तथागत।
-‘आनन्द! अशान्ति केन्ना भागत’॥22॥

-‘पंचमकार के निषेध कएलअ।
नारी के अब आगू कएलअ॥
तू रस्ता बतबइह गिरे के।
मछरी खाए, मदिरा पीए के॥’23॥

-‘देवदत्त हम्मरा न बुझल खूब।
हम्मर बिचार पर न सोचल डूब॥
मांस-खनाइ पर रहे उ खीझल।
भिक्षा में मिलल, चाहे कीनल॥24॥

हिंसा हंस मारे में जेतना।
देल मास में न हिंसा ओतना॥
भिक्षा में लोग अप्पन मास खिबइअ।
इ संघ न ओक्कर अपमान करइअ॥25॥

जग सन बइमान, न हए कोनो।
गलती अप्पन न मानत कोनो॥
मछरी जल में हेलइअ खूब।
तू देखबऽ कि तऽ जएबऽ डूब॥’26॥

-‘जहर जान हम केना पीयम।
तइयो नाग के हम न पोसम॥
काजर के जे घ्ज्ञर में रहतन।
कइरखा से उ केन्ना बचतन॥27॥

तीन चीज देखकऽ घर छोरलऽ।
एक्करा ला गोपा के त्यागलऽ॥
नारी के न लाबअ सङत में।
ओक्करा बइठाबऽ न पङत में॥28॥