भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्हारक मुरूत / पंकज पराशर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 16 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज पराशर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMai...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्हरिया रातिक दूपहर मे अन्हारक घरक कोन मे ठाढ़
एकटा मुरूत बैसल अछि जेना मूर्ति जकाँ स्थिर भ’ जेबाक
ओकरा शुरू सँ रहल होइ पुरान अभ्यास

मुरूत हिलैत अछि बजैत अछि नहुँए-नहुँए
छोड़ि दैत अछि नियंत्रण अपनो पर सँ
आ जन्मे सँ जोगल कौमार्य चुपचाप करैत अछि समर्पण

मुरूत जोगैत अछि सिनेह आ फोलैत अछि जोगाओल स्वप्नक पोटरी
जकरा नेनपने सँ बन्हनेँ छल ओ कतेक जतन सँ

मुरूत बढ़ैत अछि बिना सूर्जेक प्रकाशक आ बढ़ैत-बढ़ैत बढ़ि जाइत अछि अंतहीन अन्हार दिस
अन्हार जकर जीवनक स्थायी भाव बनल अछि
ओकरा सँ गप्पो अन्हारे के सब दिन कयल जाइत रहल अछि सब दिन

मुरूत हिलैत डोलैत चलैत करैत रहैत अछि परिक्रमा परंपरा के
आ निर्ममतापूर्वक विसर्जित क’ देल जाइत अछि
कोनो घिनाएल डबरा मे

मूर्तिपूजक एहि देश मे मूर्तिक ई इतिहास बड़ पुरान अछि!