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निधरक भई, अनुगवति है नन्द घर / आलम

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निधरक भई, अनुगवति है नन्द घर,
              और ठौर कँ, टोहे न अहटाति है ।
पौरि पाखे पिछवारे, कौरे-कौरे लागी रहै,
              ऑंगन देहली, याहि बीच मँडराति है ।
हरि-रस-राती, 'सेख' नैकँ न होइ हाती,
              प्रेम मद-माती, न गनति दिन-राति है ।
जब-जब आवति है, तब कछू भूलि जाति,
              भूल्यो लेन आवति है और भूलि जाति है ।