भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कवि और हत्यारा / कैलाश मनहर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 17 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश मनहर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कच्चे अमरूद पर टाँच मारते हुए
सुग्गे को निहार रहे थे जब तुम
उस वक़्त
हत्यारा अपना चाकू पैना रहा था
और जब
तुम्हारी निग़ाहें
उस रँगीन तितली के पीछे दौड़ रहीं थीं
तब निशाना साध रहा था
हत्यारा
फिर जैसे ही
बाग़-ओ-बहार पर लिखी
अपनी कविता पढ़ते हुए तुम
रीझने लगे स्वयँ पर तो
सड़क पर एक लाश पड़ी थी
ख़ून में लथपथ
मृतक के सीने पर
चमक रहे थे
अमरूद सुग्गा तितली और कविता
जबकि तुम्हारा पुरस्कार
अगले राष्ट्रीय उत्सव के लिए लगभग
निश्चित हो चुका था