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आषा / साधना जोशी
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जीवन में जीना है,
तो देखो जीवन की आषा ।
तराजू के दो हिस्से देखो,
एक ऊंचा एक नीचा ।
घटना बढना दोनो का देखो,
यही सूख-दुखः की सीमा ।
सूरज का उदय होना,
दिन भर धूप दिखाना ।
सांझ पड़े संध्या के,
आंचल में छिप जाना ।
प्रकृति ने संदेष दिया है,
कठिन समय में हर जन को ।
चर्खी में उपर चढ़ना और उतरना,
जैसे ही जीवन की भी परिभाशा ।
जो मिला है हमें,
उसकी खुषि मनायें ।
जो नहीं मिला उसके लिए,
खुद को आगे बढ़ायें ।
दूसरे का सुख को,
अपना सुख समझकर ।
अपना मूल्याँकन करके,
कर्तव्य निश्ठ बन जाना ।
व्यर्थ की बातों में क्यों,
अपना समय गंवाना ।
जीवन के सुख को भुलाकर,
क्यों दुःख में जीवन बिताना ।