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आकाशलीना / जीवनानंद दास
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सुरंजना, न जाओ उस जगह तुम,
मत करो बात उस युवक से,
लौट आओ, सुरंजना:
नक्षत्रों की आग-भरी रुपहली रात को।
लौट आओ इस खेत पर, इस लहर के पास,
लौट आओ हृदय में मेरे;
दूर से ज़्यादा दूर -- और भी दूर
युवक के साथ न जाओ और।
क्या बात करनी उस...उस जन से
आकाश के पीछे और एक आकाश में,
मिट्टी-सी हो गईं तुम आज,
उसका प्रेम जहाँ घास बनकर आया है ।
सुरंजना
आज घास है तुम्हारा हृदय,
हवा के उस पार हवा,
आकाश के उस पार आकाश।
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित