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ओथेलो का पथ / नबीना दास / रीनू तलवाड़

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जहाँ वे कभी पनप ही न पाईं
उन टहनियों से मृत हो गिरी तितलियाँ
रात की ओस जिसने भोर का दम घोंटा था
पड़ी थी तुम्हारे पथ पर
या थे वे छोटे-छोटे रुमाल
एक उदास पथ को रेखांकित करते हुए ?
सहज ही सफ़ेद
छल से काले
हरा कहा है उसे शब्दकारों ने,
ईर्ष्या को
मगर जब मुरझा गए वे पर्ण-समूह
तोड़ने के लिए कोई नहीं बचा था
तो, मत चलो इस पथ पर प्यारे ओथेलो
मत पोंछो अपनी आँखें
उन भौंचक्की उँगलियों से, वे सिखाएँगी तुम्हें
क्रोध और हमें एक कमी जो हमेशा रहेगी ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़