भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिरंतन सत्य / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति |संग्रह = ईहातीत छन / मृदुल कीर्ति }} चिरंतन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिरंतन सत्य सदा अदृश्य होते हैं.

क्यों होते हैं ?

इस अपराजेय सत्य का उत्तर मिले ,

तो मेरी धन्यता का पार नहीं.

अदृश्य प्रभु,


अद्रश्य प्राण,

अदृश्य वायु,

इनका दृश्यमान मूल तत्व कहाँ है ?

हर चेतना की अत्यन्त निजी खोज के उत्तर में,

प्रश्नाकुल बैचैन मेरा अन्वेषी मन ,

सुकोमल संवेदना से आविल मेरा कवि मन,

गहनतम प्रकम्पनों से झंकृत मेरा जिज्ञासु मन ,

प्रश्न , जिज्ञासा ,

अन्वेषण का अविराम मंथन

कैसे अपने अस्तित्व की मत्यर्ता में से

अपने को उठा कर किसी संभाव्य अमरत्व के आर पार ले जाऊं .

इस अपराजेय प्रशन का उत्तर मिले तो मेरी धन्यता का पार नहीं.


बहुत बार सत्य मिला ,

बहुत बार सत्य खो गया .

बहुत बार सत्य का एक सूत्र मिल गया .