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चिरंतन सत्य / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
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चिरंतन सत्य सदा अदृश्य होते हैं.
क्यों होते हैं ?
इस अपराजेय सत्य का उत्तर मिले ,
तो मेरी धन्यता का पार नहीं.
अदृश्य प्रभु,
अद्रश्य प्राण,
अदृश्य वायु,
इनका दृश्यमान मूल तत्व कहाँ है ?
हर चेतना की अत्यन्त निजी खोज के उत्तर में,
प्रश्नाकुल बैचैन मेरा अन्वेषी मन ,
सुकोमल संवेदना से आविल मेरा कवि मन,
गहनतम प्रकम्पनों से झंकृत मेरा जिज्ञासु मन ,
प्रश्न , जिज्ञासा ,
अन्वेषण का अविराम मंथन
कैसे अपने अस्तित्व की मत्यर्ता में से
अपने को उठा कर किसी संभाव्य अमरत्व के आर पार ले जाऊं .
इस अपराजेय प्रशन का उत्तर मिले तो मेरी धन्यता का पार नहीं.
बहुत बार सत्य मिला ,
बहुत बार सत्य खो गया .
बहुत बार सत्य का एक सूत्र मिल गया .