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ये रात बीत जायेगी / साधना जोशी

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महिलाओं पर जुर्म की कहानियाँ,
बदल जायेगी एक दिन ।
ये अंधेरी काली रात बीत जायेगी,
नई सुबह आयेगी ।

क्या हुआ आज हर लब्ज में,
चर्चा महिलाओं की है ।
चलना सीख रही है अभी,
नई राह में कांटे बहुत आयेगें ।
जो न जाने कितने रूपो में,
दामन को उलझायेंगे ।

कभी रिस्तों के रूप बदलकर,
सहकर्मी बनकर,
असामाजिक तत्व की तरह ।
हर रूप में चाहे कितनी ही दिवारें,
खड़ी करेगें एक रूत्री के लिए,
हर दिवारें और उलझाव से,
बचना सीखेगीं स्त्री हर स्तर पर ।

आर्कशण नहीं प्रभावित करेंगी,
झुकेगें हजारो सर,
श्रद्धा से नमन करने के लिए ।
अपने को अपने लिए ही पहले,
आदरणीय बनायेगीं ।
खुद को सुधार करक,े
अपने ही व्यक्तित्व से एक,
भय पैदा करेगी सौहार्द का ।

महिला को धिक्कारा है,
जिस रूप के लिए ।
उसको ही मिटना है,
स्वार्थ की बली देकर ।
क्यों जिष्म परोषी करे,
पेट भरने के लिए ।
अनेको विकल्प मिल जायेगें,
जीने के लिए ।

खोज करनी है उजली राह की,
रोषनी खुद व खुद मिल जायेगी ।
जो हाथ बढते बेआबरु करने के लिए,
उठेगें एक दिन वही सलाम करने के लिए ।

ये काली राम बीत जायेगी,
नई सुबह धरा पर आयेगी ।
बढे चले स्वाभिमान की,
मसाल लिए बिना लालच के,
जीवन में उजली राह के लिए ।