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अप्पन गाँव / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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गली-गली में ईंट बिछल हे, बीच सड़क कोलतारी,
विधवा-सन असहाय लगे हे विद्यालय सरकारी,
चिमनी पसरल हे बगिया में, उजड़गेल सब आम,
बिदा होल हल बैल गाँव से मिले न कोई काम
ट्रैक्टर दौड़ रहल हें सगरो, टूटल आर-पगार,
सबकुछ बदल गेल यायावर भागल नगर उराँव,
खोजे से भी मिल न रहल हें हमरा अप्पन गाँव।
जाँता-चक्की कहैं न देखलों कहैं न देशी गाय
दूध सभे सेंटर पर जाहे नीबू के हे चाय,
चापाकल सगरो अयला से कुइंयाँ सब बेकार
बिजली कजै न रह पावे हे फैलल सगर अन्हार,
महुआ, आम, नीम, बरगद के अब न कजैहे छाँव
खोजे से भी मिलन रहल हें हमरा अप्पन गाँव।
बैल-गाय सन सगर बिक रहल पढ़ल लिखल सब लड़का
बीस, पचीस, पचास लाख कोई खोज हे तड़का,
सीता, सावित्री, द्रुपदा-सन कन्या-विपदा भारी,
जे दहेज-दानव से लड़तै ओकरे हम आभारी
उषा-सुन्दरी के माथा पर पड़ल सेनुरिया रेखा,
निशा सुन्दरी के घर में संध्या के जाते देखा
उगल इंजोरिया गाँव-गली में अब न कजै हे शोर
फसल काटको मगर रात में ले जाहे सब चोर
भाग रहल हें गाँव शहर मंे बड़ी तेज है पाँव
खोजे से भी मिल न रहल हें हमरा अप्पन गाँव।
कजै न देखलों घूरा कजै न संध्या में चौपाल,
छोटे-छोट बातों पर हम देखलों बड़ा बबाल,
कजै न होली के धमाल हे कजै न हे चैतावर,
है जुआन बेटी न पैर में ओकरा लगल महावर,
कजै न कोय कीर्तन गावे हे, कजै न प्रातः काली,
ठाकुर बाड़ी हे उदास दौड़े ईर्ष्या के ब्याली,
अब न कजै कनसार गाँव में नागपंचमी मेला,
सब अपना के गुरू कहे हे कोय न केकरो चेला,
मोर, सारिका, गौरैया गुम, बोलल कौवा काँव,
खोजे से भी मिल न रहल हे हमरा अप्पन गाँव।
खेत आर खलिहान, गली में खूब क्रिकेट के खेल,
उजड़ गेल बँसबाड़ी, कटहल, बकुल या कि सब बेल,
बिन भुकम्प के धरती पर गिरगेल कमीटी हॉल
छोटका-बड़का सभे नेने हे करे मोबाइल कॉल
गंगाजी कहिया से रूठल बन गेली मरुगंगा,
भलो काम में लगा रहल हें कत्ते लोग अडंगा,
उजड़ल जाहे गाँव शहर के खूब तन रहल चादर,
काये भागल कलकत्ता, दिल्ली, कोय गेल बम्बई-दादर
महालाल, चेथरू, मेघरासी विदा हो गेला कहिया,
विदा बैलगाड़ी कहिए से दौड़े सगर दुपहिया,
पाँव पसारे ले न मिल रहल हें बंगला या ठाँव।
खोज से भी मिल न रहल हें हमरा अप्पन गाँव।।