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कत्ते ने गीत / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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नइका पुरनका से जोड़लों हम प्रीत,
मगही में रचलों हम कत्ते ने गीत।
गाँव-गँवई के हम लगो ही किसान,
सब दिन हम कैलों हें सबके सम्मान।
सब दिन से प्रकृति के सुन्दरता निहार,
होलों निहाल कैलों खूब गुण-गान।
कतनों विपत्ति आल रहलों अभीत,
बदले ले चाही हम दुनिया के रीत।
जीवन संघर्ष भरल कंटकमय राह,
हारते-हारते भी हम गेलों हें जीत।
हम यायावर ही बादल के समान,
पाँव पंख से उड़लोें रहलों जीवन के राह,
सब दिन रखलों हम प्रभु पर भी ध्यान।
वर्मा जी ऐसन कोय मिलल न मीत,
मगही में रचलों हम कत्ते ने गीत।
सिर पर उठैने विपद के पहाड़
सब दिन हम तैयो रहलांे दहाड़।
गाँव-घर रहलों चलैलों परिवार,
गाँव छोड़ छाड़ के अब ऐलो हें बाढ़।
जीवन-साथी से होल कहिए वियोग,
हमरा सतैलक हें कत्ते ने रोग।
हम ही विधाता के अस्सब सपूत,
शांति, प्रेम, मैत्री के हम ही दूत।
करते रहलों हम सब दिन से प्रयोग।
हम ही मनुष्य ई बड़का संयोग
थम गेल नदी अब प्लावन गेल बीत,
मगही में रचलों हम कत्ते ने गीत।