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गाँव के खलिहान / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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जान हमर गाँव के ई खलिहान हे
एकरा बचावे ले होल घमासान हे
ई खलिदान हमर गाँव के हे थाती
एकरा में सुत्ते बैठे गाँव के हर जाती
ठहरे हे एकरे में गाँव के हर बराती
ई बनल रहल हमर गाँव के हे बाती
माउर के गिरजा जी के बड़का मलकाना
भूख जगल उनको उपजावों हम दाना
बड़का खलिहान में देलका ऊ हाता
अपने लगैने हला खड़ा होके छाता
एक दिन गाँव के लोग सब जुटलन
छोटका बड़का सब गाँव से छुटलन
ढाहे ले पराँठा के लेलकन कोदार सब
एक होके पाट देलक हाता के गाँव सब
बड़का जमिंदार ऊ दाँत किट किटैलक
लेकिन खलिहान में फहरे हे झंडा
बुतरू सब खेले हे एजा गुली डंडा
थ्रेसर दमाही ओसौनी से भरल हे
गाय गोरू कत्ते दिन से एजो चरल हे
नाच, गान, नाटक, सम्मेलन के थान हे
जान हमर गाँव के ई खलिहान हे