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अषाढ़ / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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अषाढ़ के चढ़ते असमान करिआय लगल
बरसात के बढ़त बुतात भरिआय लगल
धान होत, पान होत खेत में मचान होत
बरसल अषाढ़ तो सभे के जान होत
झिर-झिर बतास बहे केकरा से की कहों
चुओ लगल छान छप्पर कैसेके रहों सहों
ढौंसा पियरका भी खूब लगल बोलेले
पेड़ पात विरहीके मन जैसन डोले ले

घटा में सूरज छिपल रहल बरसात में
चाँद आ तरेंगन हम देखलों नै रात में

तड़ तड़ उठल घटा घिरल आसमान में
बिजुरी चमकल लहकल आगे खरिहान में
ओढ़के डमौआ बैठल कोय हे मचान पर
नाच रहल भैंसपीठ बखतौरी तान पर

अलियारा गलियारा कादो है कीच हे
बढ़ल नहीं हे नावो तो बीचो बीच हे

अगरीसन चूओ है हम्मर आँख भी
पत्थर सन भारी है मन के पाँख भी

नयकी कनैयासन बिजुरी के देह है
बड़का अरमान एकर उप्पर में गेह है

सजल बराती मृदंग ढोल बाजो है
छाता के मंडप सगर एकर छाजो है
झाल करताल सब पच्छी बजाबो है
उमड़ल अषाढ़ के घटा चलल आवो है।