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हाथ बेशक़ जला लिया हमने / राजेन्द्र वर्मा

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हाथ बेशक़ जला लिया हमने,
होम पूरा मगर किया हमने ।

सच है, दीपक-तले अँधेरा है,
फिर भी दीपक जला दिया हमने ।

जिसको पीयूष ही पिलाया था,
उसके हाथों-ही विष पिया हमने ।

ज़िन्दगी-मौत एक जैसी थी,
लम्हा-लम्हा मगर जिया हमने ।

वक़्त का साथ तो निभाना था,
दिल को पत्थर बना लिया हमने ।

दुश्मनी हमसे दोस्त, क्या निभती,
दोस्ताना निभा दिया हमने !

अब जो करना है, तुमको करना है,
हमसे जो बन पड़ा किया हमने ।