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तुम्हारी याद आई / संजय पंकज
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फिर हवा ने पंख खोले
फिर तुम्हारी याद आई!
फिर घटा के शंख बोले
फिर तुम्हारी याद आई!
फिर उड़ी जुल्फें घनेरी
फिर घिरी बदरी अंधेरी
फिर विभा ने रंग घोले
फिर तुम्हारी याद आई!
गिरी बूँदें गगन से जब
उठी लपटें अगन से तब
फिर फिजाँ ने अंग तोले
फिर तुम्हारी याद आई!
धूप में चलता रहा हूँ
रूप में जलता रहा हूँ
फिर छलों में संग डोले
फिर तुम्हारी याद आई!
शिखर पर खोता गया हूँ
मैं मगर रोता गया हूँ
फिर धनी से रंक हो लें
फिर तुम्हारी याद आई!