भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक तुम्हारे होने से / सोनरूपा विशाल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोनरूपा विशाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक तुम्हारे होने से हर साँस ज़रूरी लगती है
वर्ना जीवन जीना भी अक्सर मजबूरी लगती है

ख़ुद पर प्यार बहुत आया जब साथ तुम्हें अपने पाया
दोपहरी से जीवन ने पल भर में पहन लिया साया
कोरे कोरे दिन की हर शय अब सिंदूरी लगती है

एक तुम्हारे होने से हर साँस ज़रूरी लगती है

सुख और दुःख के रिश्ते को रात और दिन सा स्वीकार किया
तुम्हें ध्यान में रखकर हमने हर सच का सत्कार किया
साथ तुम्हारा पाकर हर मुश्किल से दूरी लगती है

एक तुम्हारे होने से हर साँस ज़रूरी लगती है

मन की मुँदरी में मोती सा प्यार तुम्हारा जड़ कर हम
जीवन की परिभाषा समझे ढाई आखर पढ़ कर हम
इन्द्रघनुष से जीवन की थी साध जो पूरी लगती है

एक तुम्हारे होने से हर साँस ज़रूरी लगती है