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चांद से / महेन्द्र भटनागर

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कपोलों को तुम्हारे चूम लूंगा,
मुसकराओ ना !

तुम्हारे पास माना रूप का आगार है,
सुनयनों में बसा सुख-स्वप्न का संसार है,
अनावृत अप्सराएँ नृत्य करती हैं जहाँ,
नवेली तारिकाएँ ज्योति भरती हैं जहाँ,

उन्हीं के सामने जाओ ; यहाँ पर,
झलमलाओ ना !

बड़ी खामोश आहट है तुम्हारे पैर की
तभी तो चोर बनकर आसमाँ की सैर की,
खुली ज्यों ही पड़ी चादर सुनहली धूप की
न छिप पायी किरन कोई तुम्हारे रूप की,

बहाना अंग ढकने का लचर इतना
बनाओ ना !

युगों से देखता हूँ तुम बड़े ही मौन हो
बताओ तो ज़रा, मैं पूछता हूँ कौन हो ?
न पाओगे कभी जा दृष्टि से यों भाग कर
तुम्हारा धन गया है आज आँगन में बिखर,

रुको पथ बीच, चुपके से मुझे उर में
बसाओ ना !