भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितना दूर गए हो मुझसे / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:46, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोनरूपा विशाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जितना तुम पहचानो ख़ुद को उतना ही पहचानूँ मैं।
जितना दूर गए हो मुझसे उतना पास हो मानूँ मैं।
दूरी में प्रेमी संयम की बाँहें पकड़े रहते हैं।
लेकिन एक दूसरे की ख़ुशबू से जकड़े रहते हैं।
मजबूरी को सिंदूरी करना तुम जानो जानूँ मैं....।
मेरी पूजा में शत प्रतिशत पुण्य तुम्हीं को मिलता है।
प्यार तुम्हारा जीकर तन मन चाँद सरीखा खिलता है।
इसीलिए ख़ुद को ख़ुद में कम करने की ज़िद ठानूँ मैं...।