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डोडो — एक / अनिल अनलहातु

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डोडो – कभी मॉरिशस में पाए जाने वाला विलुप्त पक्षी

खेत की टेढ़ी-मेढ़ी मेड़ों से होकर
वो चला जा रहा ... हरिकिशुना ...
सर को गोते
दूर ... गाँव के सिवान पर
दिखता एक धब्बे की तरह

और इसके पहले की
हरिकिशुना लौट आए
मैं जमा कर लेना चाहता हूँ
कुछ ऊबे हुए फालतू व निरर्थक
घोषित हो चुके शब्द
क्योंकि यही वह समय है
जब शब्दों की सत्ता और अर्थवत्ता
सन्देह के घेरे से
बाहर निकलना चाहती है

शब्दों को तलाशता, खँगालता
मैं आगे बढ़ ही रहा था कि
दिखा... वो... हरिकिशुना ...
उसी तरह ख़ाली हाथ डोलाता
मुँह सिए हुए ...

जानता था यद्यपि,
हर बार की तरह लौटेगा
हरिकिशुना वैसे ही
बेज़ुबान, भूला हुआ
भटका हुआ अपने
विश्वासों के जंगल में ग़ुम ...
गुमसुम, मूक ..
खोती हुई अपनी हिम्मत को
फिर से वापस सँजोता हुआ
कि अचानक सुन पड़ी
डभक-डभक कर रोने की आवाज़
देखा ....
खेत की मेड़ो पर
एक बच्चा रो रहा है

और यही वह जगह है
जहाँ मैं बेतरह कमज़ोर
हो उठता हूँ
और इसके पहले कि मैं
अपनी ही सम्वेदनाओं की गिरफ़्त में
क़ैद हो जाऊँ
उछाल दिया मैंने
अब तक जमा किए
तमाम शब्दों को
सामने से आ रहे हरिकिशुना की ओर ।

(टूटे मँच और बिखरे लोगों के बीच से आया )
हकबकाया हुआ हरिकिशुना
चीख़ा तब एकबारगी
बड़ी ही भयानकता से ...
गूँजती ही चली जा रही है
उसकी आवाज़
खेतों-खलिहानो व गाँवों को
पार करती हुई
जंगलों-पहाड़ों, मैदानों को
लाँघती हुई
बढ़ती ही जा रही है ...
उसकी आवाज़...।