भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अच्छे दिन आयेंगे / कुँअर रवीन्द्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 22 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर रवीन्द्र |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंततः मेरे बच्चे का आज निधन हो गया
जाति. धर्म. सम्प्रदाय और विचारधारा से लहुलुहान
भूख और प्यास से वह हार गया
मेरे आंसू उसे नहीं बचा सके
नहीं भर सके मेरे आंसू उसके घाव को
मेरे आंसू नहीं बुझा पाए उसकी प्यास
 
वत्स!
इस देश में रोज़ ही इस तरह मरने वाले बच्चों को
उनके माँ-बाप के आंसू नहीं बचा पाते
मरने वाले वे सब बेनाम होते हैं
इतिहास तो दूर
वर्तमान में भी कही उनका नाम दर्ज नहीं होता
मगर वत्स!
तुम्हारा तो कुर्सी पर बैठना. चांदी की थाली में भोजन करना.
चलना-फिरना सब तिथि और समय के साथ
शिलालेखों में दर्ज होता है
 
गीता. क़ुरान या बन्दूक से अच्छे दिन नहीं आते
फिर भी हम रोते हुए अपने बच्चे के लिए
धोका देते हैं खुद को कि
अच्छे दिन आयेंगे
वत्स!
क्या तुम्हारा अध्यात्मवाद
सूखे कुओं को. सूखी नदियों को जल से भर सकता है?
नहीं न
धन के लिए तुम्हारी वासना
भूमिपुत्रों का सिर्फ़ कत्लेआम कर सकती है
 
मगर हम अभी भी जीवित हैं वत्स!
प्रेम और शान्ति का गीत फुसफुसाते हुए
आंसुओं के साथ
अपने मरे हुए बच्चे की आत्मा की शान्ति के लिए