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हम सियासत की जब से सवारी हुए / उर्मिलेश
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हम सियासत की जब से सवारी हुए
अपने हाथों ही अपने शिकारी हुए
कल जो बस्ती में इंसान थे दोस्तों
कुछ नमाज़ी हुए कुछ पुजारी हुए
इस तरक्क़ी का मंज़र भी क्या ख़ूब है
नोट होना था हम रेज़गारी हुए
मुल्क का बोझ ढ़ोते हुए दोस्तों
मुल्क के रहनुमा कितने भारी हुए
दान के नाम पर दान इतना हुआ
दानदाता हमारे भिखारी हुए