भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर निशा आपके बिन अमा सी लगे / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 22 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> हर नि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हर निशा आपके बिन अमा सी लगे
आप जब साथ हों पूर्णमासी लगे
जाने क्या बात है आप के रूप में
आधुनिक दृष्टि भी आदिवासी लगे
कोई भी स्वर्ग कीअप्सरा क्यों न हो
आपके सामने देवदासी लगे
गोरे मुख पर यह काली लटें देख कर
चाँद फ़ीका लगे रात बासी लगे
आपका साथ जब से मिला है हमें
भोर मथुरा लगे साँझ काशी लगे
आपके बिन हमें जिंदगी यूँ लगी
जैसे पानी बिना मीन प्यासी लगे