भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर }} य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह विश्वास मुझे है —
एक दिवस तुम
मेरी प्यासी आँखों के सम्मुख
मधु-घट लेकर आओगी !
बदली बनकर छाओगी !
दरवाज़े को
गोरे-गोरे दर्पन-से हाथों से
खोल खड़ी हो जाओगी !
भोले लाल कपोलों पर
लज्जा के रँग भर-भर लाओगी !
नयनों की अनबोली भाषा में
जाने क्या-क्या कह जाओगी !

ज्यों चंदा को देख
चकोर विहँसने लगता है,
ज्यों ऊषा के आने पर
कमलों का दल खिलने लगता है,
वैसे ही देख तुम्हें कोई
चंचल हो जाएगा !
बीते मीठे सपनों की
दुनिया में खो जाएगा !

फिर इंगित से पास बुलाएगा,
धीरे से पूछेगा —
‘कैसी हो,
कब आयीं ?
’ तुम क्या उत्तर दोगी ?
शायद, दो लम्बी आहें भर लोगी
आँखों पर आँचल धर लोगी !