दस मुक्तक / लव कुमार 'प्रणय'
1.
बाग का हर फूल खिल जाये ज़रूरी तो नहीं
रिस रहा हर घाव सिल जाये ज़रूरी तो नहीं
ढूँढ़ते हो क्यों समर्पण की भुजाएँ तुम यहाँ
हर किसी को मीत मिल जाये ज़रूरी तो नहीं
2.
दर्द का आवरण अनोखा है
प्यार का आचरण अनोखा है
किस तरह बात हम कहें अपनी
आपका व्याकरण अनोखा है
3.
थी नदी गहरी ...सहारे आप के ही थे
वक्त जो बीता ...नजारे आप के ही थे
हम अँधेरों से यहाँ ...घबरा गये जब भी
रोशनी वाले ...सितारे आप के ही थे
4.
मुहब्बत ...में यही पैगाम लिखना
कि... ।सारे दर्द मेरे नाम लिखना
हदें... जब पार हो जायें सितम की
ख़ुशी से तुम सुबह या शाम लिखना
5.
वह स्वयं हस्ती मिटाना चाहता है
मौत को दिल से लगाना चाहता है
नाव जर्जर, जीर्ण टूटी हो चुकी अब
और वह उस पार जाना चाहता है
6.
तेरा मेरा प्यार जिन्दगी
साँसों का संसार जिन्दगी
जब जब यह मुस्कान बिखेरे
लगती है त्यौहार ज़िन्दगी
7.
भारत के हर प्राणी का अभिमान बने
जन जन के अन्तस से निकला गान बने
रोटी कपड़ा घर सबको मिल जाये बस
मानवता का ऐसा एक विधान बने
8.
जिन्दगी का खेल भी ऐसा हुआ
क्या बतायें शोर यह कैसा हुआ
नोट बंदी का करिश्मा देखिये
आज रुपया मूल्य बिन पैसा हुआ
9.
माटी के कण-कण ने हमें जगाया है
नया सवेरा नई किरण को लाया है
देश बनाना है हम सबको मिलजुल कर
उम्मीदों का सूरज अब उग आया है
10
दूर करने को तिमिर संसार का
दीप सब मिलकर जलायें प्यार का
मत बिखरिये टूट कर यूँ इस तरह
रास्ता तो ढूँढिये उपचार का