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अगर हम अजनबी रहते / लव कुमार 'प्रणय'

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छलक कर आँख तक आये, पलक ने मौन लौटाये
धरा पर बिम्ब बनकर जो बहे वे गीत कहलाये
 
महकते फूल बगिया के सदा लूटे लुटेरों ने
सभी टूटे कलश जोड़े कुशलता से चितेरों ने
बुझी कब प्यास, प्यासों की चषक कितने ही छलकाये
धरा पर बिम्ब बनकर जो बहे, वे गीत कहलाये

मिटे हम आज अपने आप अपनी ही जवानी से
पड़े हैं आवरण ओड़े अधूरी-सी कहानी से
किसे दें दोष दुनियाँ में समझ हम कुछ नहीं पाये
धरा पर बिम्ब बनकर जो बहे, वे गीत कहलाये

बहुत अच्छा हुआ होता अगर हम अजनबी रहते
चमक उठते अँधेरे भी अगर हम रौशनी सहते
न आते राह में काँटे, न होते धुन्ध के साये
धरा पर बिम्ब बनकर जो बहे, वे गीत कहलाये