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मिसिरा जी! / अनिल कुमार मिश्र
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बदल दो हो सके तो राजसी अंदाज मिसिरा जी
नहीं है कुछ धरा इसमें उतारो ताज मिसिरा जी
कि बहुतों को सुनाया और बहुतों को सुना तुमने
मगर खुद की कभीं क्या सुन सके आवाज मिसिरा जी
करोगे क्या जरा सोचो, कहोगे क्या जरा सोचो
दगा दे दे अभी यदि जिन्दगी का साज मिसिरा जी
बहुत भारी नहीं लगता कि इनका बोझ कन्धों पर
उतारो अब लबादों को कि जिन पर नाज मिसिरा जी
नहीं कुछ चाहिए जिसको वही है शाह शाहों का
फकीरों साथ बैठो और जानों राज मिसिरा जी