भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने हैं क्या तुम्हारे पास / सुभाष राय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 26 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |अनुवादक= |संग्रह=सलीब प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रास्ते कई बार रास्ते नहीं होते
कहीं जाते नहीं, कहीं ले नहीं जाते
कुछ दूर जाकर नदी में बह जाते है
टूट कर गिरे पहाड़ के नीचे दब जाते है
कई बार वे पहुँचते हैं किसी घाटी या जँगल में
जहाँ से पीछे लौटने का मौक़ा नही होता
जहाँ पहुँचकर भूल जाता है यात्री कि और आगे जाना था
जिनके पास सपने नहीं होते
वे ही पाँवों के निशानों का पीछा करते है
वही ढूढ़ते हैं आसान रास्ते
सचमुच वे कही नही पहुँचते
सपने गढ़ते हैं नए रास्ते, नई मँज़िलें
सोचो, क्या सचमुच सपने हैं तुम्हारे पास