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अकाल के बादल / सुभाष राय
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नहीं कुछ मत कहना इन मेघों से
तुम्हारा मज़ाक उड़ाएँगे ये
तुम्हारी पीड़ा मैं जानता हूँ
आदमी की उम्र तक अकाल में दबे
तुम्हारे जिस्म का दर्द मैं जानता हूँ
मुँह मत खोलना इन मेघों से
मैं देख रहा हूँ तुम्हारे जिस्म पर
बँजर ज़मीन की दरारें
बारिश का इन्तज़ार करती हुईं
ये बादल बहुत गरज रहे हैं
कुछ मत माँगना इनसे
ज़रा, देखो तो बादलों के उस पार
चमचमाती धार वाले खँजरों को
बारूदी घड़ियों को
ग़ौर से सुनो, ये चीख़ें
आयतों और श्लोकों की धार से
घायल लोगों की
मत माँगो इनसे कुछ
दूत नहीं बन सकते
ये मेघ अकाल के