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गान्धी की विरासत / सुभाष राय

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उसने कहा, बुरा मत देखो
और हमने आँखें बन्द कर लीं
हम कुछ नहीं देखते
पता नहीं क्या बुरा दिख जाए
आँखें बन्द हैं तो मन चँगा है
कठौती में गँगा है

उसने कहा, बुरा मत सुनो
और हमने सुनना बन्द कर दिया
नहीं पहुँचतीं हम तक अब किसी की चीख़ें
कुछ भी विचलित नहीं करता हमें

उसने कहा, बुरा मत बोलो
मसीहे की बात कैसे नहीं मानते हम
हम जो भी बोलते हैं, भला बोलते हैं
गूँगे नहीं बन सकते हम
उसकी विरासत सम्भालनी है हमें
आज़ादी बचानी है, लोकतन्त्र जमाना है
बहुत भार है हमारे नाज़ुक कन्धों पर
निभाना तो पड़ेगा
कभी अक्षरधाम, कभी कारगिल, कभी दाँतेवाड़ा
बहादुरों के जनाज़ों पर राष्ट्रगान गाना तो पड़ेगा
 
मसीहे का चौथा बन्दर कभी आया ही नहीं
हमसे यह कहने कि कुछ करो भी
फिर भी हम नहीं भूले अपना करणीय
कर्म पथ से नहीं हटे
गान्धी के सच्चे अनुयायी
सुख-सम्पदा तो यूँ ही चली आई
सब बापू का है, सब बापू के नाम
उस महात्मा को प्रणाम !