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मैं फिरूँ क्यों कू-ब-कू / अमन चाँदपुरी

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मैं फिरूँ क्यों कू-ब-कू
रब है मेरे रू-ब-रू

मैंने सोचा था जिसे
आप हैं वो हू-ब-हू

क्या हूँ मैं महसूस कर
जान मेरी मुझको छू

ज़ीस्त की हर राह पर
ठोकरें हैं चार सू

देखना है जो अदब
आप आएँ लखनऊ