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नदी / ऋषभ देव शर्मा

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तुम नदी
छलछलाती
आवेग मेँ उद्दाम !

चट्टानों को फोड़ दिया
काट दिए पर्वतों के शिखर
तराश दिया
धरती का सीना ;
पानी की धार !

उमंग सें,
उल्लास सें,
आनंद सें भरपूर !

फलांगती जंगल
लांघती मरुथल
आ गईं समुद्र तक

समा गईं प्यार सें,
हुई पूर्ण काम!

तुम नदी
आवेग मेँ
छलछलाती उद्दाम !