भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधूरा दंतक्षत / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 30 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो !
सृष्टि के आरंभ में
उस क्षण
मेरे दाएँ हाथ की
अनामिका के पहले पोर पर
जो संसभ्रम
अधूरा दंतक्षत
तुमने लिख दिया था,
वह
रति के कामनालेख सा
हर साँझ
कल्पवृक्ष बन महमहाता है,
रोमों में
घंटियाँ बजने लगती हैं –
जैसे तुम मुस्का दी हो,
और फिर
झनझनाकर सब ठहर जाता है –
जैसे तुम लजा गई हो|

बस एक अहसास बचता है –
जैसे
मेरे दाएँ हाथ की
अनामिका के पहले पोर पर
अंकित है
प्रणय का शाश्वत घोषणापत्र !