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जब लिखूँगा नाम तेरा / ऋषभ देव शर्मा

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जब लिखूँगा नाम तेरा, रूप की सरिता लिखूँगा
में तुम्हारी देह पर अब, होंठ से कविता लिखूँगा
 
इमलियों की छाँह खट्टी
और बौराई दुपहरी
एक पल भी थिर न रहती
चेतना की यह गिलहरी
 
हार निज स्वीकार कर यों
में तुम्हें अजिता लिखूँगा
जब लिखूँगा नाम तेरा
रूप की सरिता लिखूँगा
 
दूर बजती घंटियों सी
निकट गूँजे बाँसुरी सी
नित्य अम्मृत में डुबोई
प्राण पर चलती छुरी सी
 
मैं तुम्हारी हर हँसी को
राधिका–ललिता लिखूँगा
मैं तुम्हारी देह पर अब
होंठ से कविता लिखूँगा
  
इस सुनहरी धूप में यों
बर्फ सा पिघला किया मैं
एक पल में जी कई युग
फिर मरा, फिर–फिर जिया मैं
 
अलक रजनी, पलक संध्या
होंठ पर सविता लिखूँगा
जब लिखूँगा नाम तेरा
रूप की सरिता लिखूँगा