आत्मकथ्य / यूनीस डिसूजा / ममता जोशी
देखो!
अब सही उफ़ान आया है
तीन वर्ष की थी मैं
जब मैंने अपने पिता की हत्या की थी
मेरी रूमानी ज़िन्दगी में हमेशा उथल -पुथल ही रही
कई रिश्ते बने पर नतीजा सिफ़र
इन कसैले अनुभवों से मुझे ज़रा सी भी सीख नहीं मिली
हर बार नीरसता से
गहरी खाई में
नियमित रूप से गिरती रही हूँ ।
दुश्मनों का कहना है
मैं महज आलोचना करती हूँ
केवल जलन के मारे मैं हरदम तड़पती हूँ
इसलिए मुझे शादी कर लेनी चाहिए ।
दोस्तों के हिसाब से
मैं काफी प्रतिभाशाली हूँ ।
और हाँ !
मैंने आत्महत्या की कोशिश भी की थी
अपने कपडे सँवारे
लिखकर कोई कागज़ का पुर्जा नहीं छोड़ा
ताज्जुब तो तब हुआ
जब सुबह मैं भली-चंगी उठ गई ।
एक दिन मैंने अपनी आत्मा को
देह से बाहर पाया
वह मुझे निहार रही थी
जब मैं ऐंठ रही थी, बड़बड़ा रही थी
अनर्गल प्रलाप करते मुस्कुरा रही थी
मेरी त्वचा मेरी हड्डियाँ पर कसती जा रही थी
मुझे लगा
पूरी दुनिया तेज़, धारदार उस्तरे से
मेरा पूरा शरीर चीरकर रख देगी
एक घिसा-पिटा मुहावरा मुझे याद आया
और मैंने महसूस किया
यही तो मैं भी पूरी शिद्दत से करना चाहती हूँ
इस जहाँ के साथ ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : ममता जोशी