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सहयाद्रि / यूनीस डिसूजा / ममता जोशी

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यह कवि की अन्तिम कविता है

उड़ा देना
मेरी राख को
पश्चिमी घाट में
अब वही पहाड़ियाँ घर सी लगती हैं

तेंदुऐ शायद कविता का स्वाद चख लें
कौव्वे और चील अपनी आवाज़ के उतार-चढ़ाव को
सँवार लें

मौसम चाहे प्रतिकूल भी हो
धुन्ध और झरने
घास और फू़ल
कायम रहें

हर समय ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : ममता जोशी