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हाँ मैं स्त्री हूँ / साधना जोशी

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हाँ मैं स्त्री हूँ,
पर मुझे दुःख नहीं,
क्योंकि मैं बेटी हूँ, माँ हूँ ।
मुझे गर्भ हैं अपनी भूमिकाओं पर,
धरती का रूप हूँ मै,
कितने अंकुर पनपते हैं मुझ में ।

सारे प्राणियों का अस्तित्व मुझ से है,
इसीलिए मुझमें धैर्य है, करुणां है ।
जनन पालन करने की क्षमता है,
और मुझे गर्भ है, अपने अस्तित्व पर ।

मुझे कोई प्यार करे मेरा कोई संहार कर,े
मेरा अस्तित्व बना रहेगा युगो-युगो तक ।
मैं किसी के सम्मान की महोताज नहीं,
क्यांेकि मुझे विष्वास है अपने आप पर,
इसीलिए मैं गर्भ से कहती हूँ कि मैं स्त्री हूँ ।

मुझमें षक्ति है हर कश्टों से लड़ने की,
हर कार्य को करने की ।
डरा नहीं सकते मुझे समाज के कदरदान,
किसी दहेज, भ्रूणहत्या, बेआवरू बना के ।
मैं चिनगारी हूँ, किसी न किसी रूप में,
ज्वालामुखी बनगकर भस्म कर दूँगी हर हत्यारे को ।
मुझे डर है तो ये कि,
कहीं मैं कमजोर न पड़ जाऊँ ।
अपने कर्तव्य की राह पर,
बुराई की लपटों में मिट न जाऊँ ।
बचाना है अपना अस्तित्व,
और आयना दिखाना है,
औरत को निम्न समझने वाले,
गिरे मानसिकता वाले लोगों को ।
पर राह आसान नहीं है ये,
क्योंकि हजारों काँटें हैं उलझाने के लिए ।

इसीलिए दूर रखनी है नाजुक्ता,
अषिक्षा, अन्धविष्वास, अज्ञानता ।
और कर्मठता जोष से,
बढना है जिन्दगी की राह में,
बाजुओं में षक्ति भर कर ।

क्यों ? हर फब्तियाँ मुझ पर कसी जाती है,
क्यों? हर चुटकले मुझ पर ही बनते हैं,
क्यों? मुझे सहारा देने का भ्रम,
पाला जाता हैं मन में,
स्त्री से ही डर है पुरुशत्व को,
इसीलिए घेरा जाता है हर रूप मेे ।
कितने ही तीर चलाओं पर रुकूँगी नहीं,
बढ़ते रहेंगे कदम मेरे हर हाल में ।
क्योंकि मैं ही हूँ स्त्री षक्ति रूपा,
गर्भ करना है मुझे अपने अस्तित्व पर ।