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चान्द के बहाने / महाराज कृष्ण सन्तोषी

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आज जब
मैंने कार्तिक पूर्णिमा का चान्द देखा
मन में यह ख़याल आया
क्यों न इसे तोड़कर
कुछ दिन अपने पास रखूँ

जब आकाश से
चान्द ग़ायब होगा
तो चारों ओर कोहराम मचेगा
जलूस निकलेंगे
आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे

यहाँ तक कि कुछ लोग
चाँद पर भी उँगली उठाएँगे
और उसे नक्सलियों का समर्थन मानकर
उसके भूमिगत होने की अफ़वाहें फैलाएँगे

सरकार
तारों से पूछताछ करेगी
मज़हबी लोग
यह कहते हुए सुने जाएँगे
चान्द हमारा है
उन्होंने हमारे चान्द का अपहरण किया है

वे फिर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना
शुरू करेंगे
हमें हमारा चान्द चाहिए

कुछ विपक्षी नेता और बुद्धिजीवी
चान्द को धर्मनिरपेक्ष कहकर
जनता से उसे बचाने की अपील करेंगे

मैं यह सब देख कर हंसूगा
और मुझे हंसते हुए देखकर
क्या पता
चान्द भी हंसने लगे

तब मैं चुपके-चुपके
बिना किसी के देखे
उसे वापस आकाश पर टाँक दूँगा
और भूल जाऊँगा
मैंने कभी आकाश से चान्द तोड़ा था।