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आइए हम जनहित-याचिका दायर करें / दिनकर कुमार

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आइए, हम जनहित याचिका दायर करें
करुणा के बारे में
जो पहले रहती थी सबके हृदय में
जो बहती थी धमनियों में
जो हमारे जीवन का हिस्सा थी
जो आज ग़ुम होती जा रही है
 
आइए, हम जनहित याचिका दायर करें
भावना के बारे में
जो पहले छलछलाती थी आँखों में
धड़कती थी अनुभूतियों के सँग-सँग
जो मानवीय गुणों को बचाती थी
जो आज ग़ुम होती जा रही है

आइए, हम जनहित याचिका दायर करें
प्रेम के बारे में
जो पहले एक पवित्र अनुभूति का नाम था
जो अपरिचित हृदयों को जोड़ता था
जो जीवन को उज्ज्वल बनाता था
जो आज नीलाम होता जा रहा है

आइए, हम जनहित याचिका दायर करें